ALONE SHAYARI
कैसे गुजरती है मेरी हर एक शाम,
तुम्हारे बगैर अगर तुम देख लेते तो,
कभी तन्हा न छोड़ते मुझे !
मुझको मेरे अकेलेपन से अब, शिकायत नहीं है मैं पत्थर हूँ मुझे, खुद से भी मुहब्बत नहीं है !
अनजान से रास्तों पर अकेली जा रही हूं तेरी मोहब्बत में पागल होकर दर-दर की ठोकरें खा रही हूं.
काश तू समझ सकती मोहब्बत के उसूलों को, किसी की साँसों में समाकर उसे तन्हा नहीं करते.
कैसे गुजरती है मेरी हर एक शाम तुम्हारे बगैर अगर तुम देख लेते तो कभी तन्हा न छोड़ते मुझे।
सहारे ढूढ़ने की आदत नहीं हमारी हम अकेले पूरी महफिल के बराबर है।
तुझसे दूर जाने के बाद तन्हा तो हूँ लेकिन,
तसल्ली बस इतनी सी है,
अब कोई फरेब साथ नहीं !
ए दिल जिसके दिल में तेरे लिए कोई जगह ही नहीं है, वही तेरे लिए खास क्यों है !
तुम क्या जानो हम अपने आप
में कितने अकेले है,पूछो इन
रातो से जो रोज़ कहती है के
खुदा के लिए आज तो सो जाओ.
कैसे गुजरती है मेरी हर एक शाम तुम्हारे बगैर, अगर तुम देख लेते तो कभी तन्हा न छोड़ते मुझे।